Wednesday, 24 December 2014

चौंका देता है सूर्य मंदिर का वास्तुशिल्प

उड़ीसा राज्य में कोणार्क का सूर्य मंदिर अपने अनूठे वास्तुशिल्प के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह मंदिर कला, संस्कृति और आस्था का प्रतीक है। मंदिर के निर्माण से एक रोचक गाथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि गंग वंश के राजा नरसिंह देव को कुष्ठ रोग हो गया था। उन्हें किसी ने सुझाव दिया कि सूर्योपासना की जाए तो इस रोग से मुक्ति मिल सकती है। तब राजा ने चंद्रभागा नदी और समुद्र के संगम स्थल पर इस मंदिर का निर्माण करवाया।
यह मंदिर बारह सौ शिल्पियों के अथक परिश्रम से लगभग बारह साल में बनकर तैयार हुआ था। मंदिर के शिल्पकला को पर्यटक निहारते ही रह जाते हैं और विदेशी सैलानियों के लिए तो यह खासा आकर्षण का प्रतीक है।
मंदिर की कल्पना भगवान सूर्य के रथ के रूप में की गई है। रथ में बारह जोड़ी विशाल चक्र हैं जिन्हें सात अश्व खींच रहे हैं। रथ के बारह पहिए साल के बारह मास के प्रतीक हैं। इस मंदिर के भग्नावशेष ही अब बचे हैं। लेकिन शिल्पकला आज भी दर्शनीय है।
मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया है ताकि सूर्य की प्रतिमा पर विभिन्न कोणों से दिन भर सूर्य की किरणों पड़ती रहें। संभवतः इसलिए इस मंदिर का नाम कोणार्क (सूर्य का कोण) रखा गया है।
मंदिर के तीन प्रधान अंग गर्भगृह, मंडप व नाटमंडप एक ही अक्ष पर हैं। मंदिर चौकोर परकोटे से घिरा है। मंदिर के सम्मुख समुद्र से सूर्यास्त का मनोहारी दृश्य दिखाई पड़ता है। मंदिर की दीवारों पर पशु−पक्षियों, देवी−देवताओं और मनुष्यों की आकृतियां उत्कीर्ण की गई हैं।
पहियों पर कमल के चित्र उकेरे हुए हैं। जिनमें नृत्यरत स्त्रियों की मूर्तियां हैं। पत्थर से बनी हाथी व घोड़े की विराट मूर्तियां भी दर्शनीय हैं। मंदिर की बाहरी ओर मनुष्य व पशुओं को विभिन्न मुद्राओं में दिखाया गया है। रतिक्रीड़ा के भी यहां कई दृश्य है लेकिन उन्हें देखकर कोमात्तेजना नहीं बल्कि कलाप्रेम का भाव उत्पन्न होता है। उड़ीसा के सामाजिक जनजीवन का चित्रण भी यहां बड़ी ही खूबसूरती से किया गया है।

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