भारत के दक्षिणी छोर पर हैं कन्याकुमारी। यहां बंगाल की खाड़ी, भारतीय समुद्र और अरब सागर तीनों आकर एक जगह मिलते हैं। हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। इस जगह का नाम यहां मौजूद कन्याकुमारी मंदिर के नाम पर पड़ा। कन्याकुमारी मंदिर देवी कुमारी कन्या को समर्पित है। ब्रिटिशों ने कन्याकुमारी को केदकोमोरिन कहा था। यहां समुद्री किनारों पर चमकीली रेत मन मोह लेती हैं। कन्याकुमारी में सूर्यास्त और सूर्योदय का नजारा अविस्मरणीय होता हैं। समुद्र के किनारे होने के कारण यहां का मौसम सुहावना रहता हैं। कहते हैं स्वामी विवेकानंद ने यहां समुद्र किनारे कुछ दिन ध्यान में बिताए थे।
कन्याकुमारी बरसों से कला, संस्कृति, व्यापार और तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता हैं। यहां हर कोई अपने कारोबार के सिलसिले में आया। चोल और पांडया दक्षिणी भारत के महान शासकों में से जाने जाते हैं। इनके राज्य के दौरान कन्याकुमारी में प्रसिद्ध मंदिर बनवाया गया। एक किवदंती के अनुसार पार्वती की अवतार कन्या देवी भगवान शिव से शादी करना चाहती थी। मगर भगवान शिव शादी में सही समय पर नहीं पहुंचे और यह शादी नहीं हुई। शादी में बनने वाला भोजन की अधपका रह गया। निराश कन्या देवी ने ताउम्र कुंआरी रहने का और अपना सारा जीवन कन्याकुमारी में बिताने का फैसला किया। वह देवी के रूप में कन्याकुमारी मंदिर में आज भी विराजमान हैं। कहा जाता हैं शादी में बना खाना चमकीले रेतों में बदल गया जिसे समुद्र किनारे आज भी देखा जा सकता है।
पर्यटन के लिहाज से यह जगह काफी खास हैं। यहां देखने के लिए बहुत कुछ हैं। मुख्य पर्यटन आकर्षण हैं कन्याकुमारी मंदिर। इसे कुमारी अमान मंदिर भी कहा जाता हैं। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद रॉक मेमोरिलय, गांधी मेमोरियल और सुचिनद्रम मंदिर दर्शनीय हैं। कन्याकुमारी मंदिर का जिक्र रामायण और महाभारत में भी है। ऐसा माना जाता है कि परशुराम ने देवी की आकृति बनाई और फिर पूजा की। देवी के डायमंड नोज रिंग की चमक समुद्र किनारे से भी देखी जा सकती है।
स्वामी विवेकानंद रॉक मेमोरियल मुख्य भूमि से लगभग 500 मीटर दूर हैं। यह मेमोरियल दो पत्थरों पर बना है जिसकी दूरी 70 मीटर हैं। 1970 में इसे बनवाया गया। 1892 में स्वामी विवेकानंद यहां पत्थर पर बैठकर ध्यानमग्न हुए थे। यहां ध्यान मंडप हैं, जहां कोई भी बैठकर ध्यानमग्न हो सकता है।
गांधी मेमोरियल में गांधी जी की राख रखी हुई हैं। तीन समुद्र में डालने से पहले राख का कुछ हिस्सा यहां लोगों के दर्शन के लिए रखा गया था। यह मेमोरियल उडि़या मंदिर के समान दिखाई देता हैं। यहां सूर्य की किरणें सीधे उस जगह पर पड़ती हैं जहां राख रखी है।
पद्मनाभपुरम पैलेस- यह पैलेस त्रवनकोर राजा की बहुत बड़ी हवेली हैं। यहां से प्रकृति का अद्भुत नजारा देखा जा सकता हैं।
इसके अलावा कन्याकुमारी से कुछ दूरी पर वट्टकोटई फोर्ट, उदयगिरी फोर्ट, 133 फीट तिरूवैलूवर प्रतिभा, अक्के अरूवी वाटर फॉल, तिरूचेंदूर मंदिर देखा जा सकता हैं।
कन्याकुमारी जाने का सही समय अक्टूबर से अप्रैल तक हैं। यहं पहुंचने के लिए रेल, सड़क और हवाई जहाज किसी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
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Wednesday, 24 December 2014
कन्याकुमारी
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