Wednesday 14 January 2015

shayari



ठोकर लगने पर न दे, पत्थर को इल्ज़ाम
अंधी दौड़ों का यही, होता है अंज़ाम

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आख़िर क्यूँ मानूँ भला, क़िस्मत से मैं हार जब तक मेरे पास है, मेहनत की तलवार
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पैसे की पहचान यहाँ, इंसान की क़ीमत कोई नहीं... भूख है मज़हब इस दुनिया का, और हक़ीक़त कोई नहीं....
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एक ठहरा हुआ खयाल तेरा, न जाने कीतने लम्हों को रफ्तार देता है..!

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बड़ा मीठा नशा है तुम्हारी यादों का... वक़्त गुजरता गया और हम आदी होते गए.....

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विश्वासघाती इन्सान अपनी जिन्दगी से बडा कुछ नहीं पा सकता
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ज़िन्दगी की आधी शिकायते ऐसे ही दूर हो जाएँगी अगर लोग... 'एक-दूसरे के' बारे में बोलने की जगह 'एक-दूसरे से' बोलना सीख जाये...
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ज़िन्दगी को समझने में वक़्त न गुज़ारिये थोड़ी जी कर देखे पूरी समझ में आ जायेगी....!
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"कौन किसी को क्या देता है, कौन किसी से क्या ले जाता है।" 🍃🍀🍃🍀🍃 "सबसे प्रेम के दो शब्द बोलो,तुम्हारे जेब से क्या जाता है ।"
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झूठ अगर यह है कि तुम "मेरे" हो, तो , मेरे लिए "सच" कोई मायने नहीं रखता
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